क्रियाहीनता हमारे पुरुषार्थ पर जंग लगा देती है : आचार्यश्री रामलाल जी म.सा.

बीकानेर। कभी भी छोटे नियम को उपेक्षित नहीं करना चाहिए, जो छोटे नियमों की अवहेलना करते हैं वह बड़े नियमों की भी उपेक्षा कर देते हैं। उक्त प्रवचन आचार्यश्री रामलालजी म.सा. ने रविवार को जैन पब्लिक स्कूल मैदान में कहे। आचार्यश्री ने कहा कि वट वृक्ष का बीज भी छोटा होता है, लेकिन पकने के बाद वही बीज विशालकाय वटवृक्ष का आकार ले लेता है। नियमों में महानता छुपी होती है, एक छोटा सा नियम हमारी दिशा को बदल देता है। दिशा बदलती है तो दृष्टि बदलती है और दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है। आचार्यश्री ने कहा कि जहां और की बात आती है वहां अपेक्षाओं का शोर होता है। जब हम तृप्त नहीं होते हैं तो अपेक्षाएं बढ़ जाती है और हम और… और करते रहते हैं। जहां अपेक्षाएं नहीं होती, इंद्रियों का शोर नहीं होता, वहां छोर होता है, किनारा होता है, आत्म तृप्ति वहीं होती है। आचार्यश्री ने कहा कि लड़ाई-झगड़े, तीखे व्यंग्य बाण चलाना, अपना बड़प्पन साबित करना, खुद को किसी से कम नहीं समझना सब इंद्रियों के खेल हैं। विवाद ही अलगाव कराता है, विवाद से पहले यदि हट जाएं तो चित्त प्रसन्न रहेगा। जिसमें सामथ्र्य होता है वही सहन कर सकता है। जिसके पास कोई काम नहीं होता, वही कलह का कारण बनता है। मेहनत से शारीरिक क्षमता बढ़ती है, काम नहीं करने से व्यक्ति पंगु हो जाता है। क्रियाहीनता हमारे पुरुषार्थ पर जंग लगा देती है। जिस व्यक्ति को काम से ही फुरसत नहीं मिलती है वह कलह करने में समय व्यतीत नहीं करता। आचार्यश्री ने रामायण का वृतान्त सुनाते हुए कहा कि भरत भी राजपरिवार में रहते हुए तपस्वी की तरह रहे। जब उनके भाई वनवास गए हुए थे तब भरत ने भी तप के साथ अपना धर्म निभाया। इससे पूर्व मुनिश्री संजय जी म.सा ने उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी म.सा. की बाल लीला तथा वैराग्य का वृतांत सुनाया। मुनि श्री संजय जी म.सा. बताया कि 16 फरवरी 1992 को बीकानेर की ही बाफना स्कूल में आचार्यश्री नानेश से उपाध्याय प्रवर ने संयम जीवन स्वीकार कर लिया। साध्वी विचलाश्री जी ने गीतिका सुनाई। संघ के हेमन्त सिंगी ने सोमवार का प्रवचन गंगाशहर स्थित जैन पब्लिक स्कूल में होने की संभावना जताई।