क्या सीजेआई को कानून याद दिलाना पड़ेगा – सर्वप्रिया सांगवान

सर्वप्रिया सांगवान
ये एक बड़ी विंडबना है कि देश के सबसे बड़े जज को कानून याद दिलाना पड़े जो उन्होंने खुद डिक्लेयर किया था 2012 में. बस तीन महीने की बात है, आप पद से इस्तीफा देकर जांच समिति का सामना करें. ये हो सकता है कि आप बेकसूर हों और किसी बड़े मुकदमे की वजह से आपको ये नुकसान झेलना पड़ रहा हो.

ये भी हो सकता है कि आप कसूरवार हों और इस मुक़दमे की वजह से समझौता कर लें और इसका प्रभाव बहुत से मुक़दमों पर पड़े.ये भी हो सकता है कि जांच समिति में न्याय ना हो लेकिन प्रक्रिया यही है जो शुरू होनी चाहिए. आपके दुश्मन भी हो सकते हैं जो आपको फंसाने की कोशिश करें लेकिन आप जिस पद पर हैं वहां दोस्तों की भी क्या कमी है.
भारत के वित्त मंत्री आपके लिए ब्लॉग लिख रहे हैं. वहीं, भारत सरकार के ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ही इस मुद्दे को सबसे पहले उठाया था. सब है तो कंफ्यूज़न लेकिन इसका हल सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया को फॉलो करके ही निकल सकता है. अगर आप लोगों को न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा नहीं तो आम लोगों को कैसे यकीन दिलाएंगे आपके ही सिस्टम पर?
आप जजों ने तो आज तक NJAC शुरू नहीं होने दिया क्योंकि आपको अपने collegium सिस्टम पर भरोसा है. बाक़ी जो लोग ऐसा बोलते हैं कि आरोपित या आरोपित के परिवार वालों को मीडिया में बोलना चाहिए तो वो गलत हैं, अनभिज्ञ हैं और बेवकूफ़ भी. ये सरासर न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करना होता है. कोई चुप है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो कसूरवार है. कोई बहुत बोलता है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो सही है. बाकी, अगर किसी को लगता है कि sexual harassment का गलत आरोप लगने पर क्या करना चाहिए तो कमेंट में लिंक देखें. सीजीआई को भी देखना चाहिए.